‘चाय वाली सेना’ से ‘देश की चौकीदारी’ तक के पांच साल
2019 लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई हैं. 11 अप्रैल से चुनाव आयोग भी देश की अलग-अलग पार्टियों के प्रतिनिधियों की परीक्षा शुरू कर देगा. पार्टियों ने भी जीत के लिए हर दांव आजमाने का दम भर दिया है. देश की सबसे बड़ी एवं सत्तासीन पार्टी बीजेपी ने इस बार पिछली बार की अपेक्षा थोड़ी अलग रणनीति अपनाई है. बता दें, पालिटिक्स के इस मैदान में 5 साल में एक बार इंडिया कप की सीरीज होती है. जिस पार्टी के पास जितना दबदबा होता है वो पार्टी उतने ही सांसदों के साथ विजयी होती है. बीजेपी ने इस बार जो कैंम्पेन किया है उसमें अपने आपको देश का चौकीदार दिखाने की कोशिश की है.
बीजेपी खुद को चौकीदार दिखाकर ये साबित करना चाहती है की उसने रात-दिन जागकर देश की सुरक्षा की है. ये कैंम्पेन पार्टी के पिछले कैंम्पेन ”चाय पर चर्चा” का ही अगला रूप है. 2014 में पार्टी ने जहां चाय पर चर्चा के जरिए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की थी तो वहीं इस बार चौकीदार की सरकार. पार्टी का दावा है ्कि मोदी सरकार ने पूरे चार साल चौकीदार बनकर अपना काम किया हैं. अपने आपको चौकीदार बनाकर जिस तरह मोदी सरकार अपने आपको अच्छी छवि सवांरने की कोशिश में लगी हुई है, उससे ये तो साफ हो गया की इस बार चौकीदार को निशाना बनाकर अपना उल्लू सीधा करने वाला कांन्सेप्ट चलेगा. इसी के साथ बीजेपी पार्टी में चौकीदारों की हालत का जायजा ले लेते हैं. इसके लिए हमें चलना होगा 2014 के लोकसभा चुनाव की तरफ. वही लोकसभा चुनाव, जिसमें चाय पर चर्चा हुई थी.
इस चुनाव में पार्टी के 33 फीसद प्रत्याशी आपराधिक पृष्ठभूमि के थे. जबकि 21 फीसद सांसद प्रत्याशी ऐसे थे जो गंभीर आपराधिक कार्यों में शामिल थे. गंभीर आपराध का मतलब यहां पांच साल से ऊपर की सजा पाने वाले सांसदों से है. इनमें से बीजेपी के काफी सांसदों ने जीत हासिल की. इस जीत के साथ ”चाय वाली सेना” अब प्रमोट होकर ”चौकीदारी” में लग गई थी. इसी के साथ बीजेपी पार्टी सत्ता में 281 चौकीदारों के साथ आई. इन चौकीदारों में 35 फीसद यानि 97 चौकीदार दागी थे. इन सांसदों के ऊपर आपराधिक मुकदमें चल रहे थे. वहीं पार्टी के 63 सांसद यानि 22 फीसद पर तो कोर्ट ने पांच साल से ज्यादा की सजा भी सुना दी थी. इन चौकीदारों को घर की तिजोरी संभालने की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई थी. अब तिजोरी संभालने के लिए जब हर तीसरा चौकीदार चोर है, तो सिक्योरिटी इंचार्ज ने इसे ध्यान में रखकर लोकसभा चुनाव 2019 से पहले एक अहम फैसला लिया.
इस फैसले में उन्होंने छत्तीसगढ़ के 10 सांसदों को इस बार टिकट नहीं दिया. इंचार्ज ने इस बार नए चहरों के साथ छत्तीसगढ़ की सीट पर धौंस बनाने की कोशिश की. ऐसे में एक सवाल जरूर उठता है-अगर इन चौकीदारों की वफादारी में कोई शक था तो पिछले चार सालों से छत्तीसगढ़ में ये चौकीदार कौन सी रखवाली कर रहे थे? अगर ये चौकीदार वफादार थे तो इनको इस बार नए चहरों से क्यों बदला गया? किसी के अच्छे कामों को पार्टी इस तरह से ईनाम देती है या फिर चुनाव ही जीत ही सब कुछ होती है?. आम जनता के हित और अहित चुनाव में जीत हासिल करने और अपना वर्चस्व कायम करने के आगे कुछ भी नहीं !.