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Narendra Modi Guru : 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का जन्मदिन मनाया जाता है. उनके समर्थक इस दिन केक काटकर खुशियां बांटते हैं. वहीं, पीएम अपनी मां से मिलकर इस दिन की शुरुआत करते हैं. पीएम मोदी देश के उन प्रधानमंत्रियों की सूची में शामिल हैं, जिन्होंने अपने दम पर तमाम सियासी रास्तों को तय किया. उनके परिवार का संबंध राजनीति से बिलकुल नहीं था.
इसके बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत के जरिए सियासत में मजबूत कदम जमाए. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि पीएम के सियासी गुरू कौन थे? किसके उद्देश्यों पर चलकर पीएम ने राजनीति की शिक्षा ली. ये कोई और नहीं गुजरात के एक वकील थे. जिनकी मदद से उन्होंने राजनीति की बारीकियों को सीखा. पीएम मोदी ने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में बताया था कि किस तरह वो इस वकील से अपने मन की हर बात को साझा किया करते थे.
पीएम मोदी के इस राजनीति गुरू का नाम लक्ष्मणराव इनामदार था. गुजरात के रहने वाले लक्ष्मणराव सूबे में RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) संस्थापकों में से एक थे. पीएम मोदी की उनसे मुलाकात उस समय हुई जब वो RSS में स्वयंसेवक के तौर पर कार्यरत थे. मोदी के गुजरात से दिल्ली तक के सफर में लक्ष्मणराव की बहुत भूमिका रही है.
लक्ष्मणराव का जन्म मूलत: पुणे के खाटव गांव में हुआ था. उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की और संघ के साथ जुड़ गए. गुजरात के RSS प्रचारक के तौर पर उन्होंने कभी विवाह नहीं किया. नरेंद्र मोदी की लक्ष्मणराव से मुलाकात 1960 में हुई थी. उस समय नरेंद्र मोदी उम्र में छोटे थे. लक्ष्मणराव की धाराप्रवाह वाकपटुता और शैली ने नरेंद्र मोदी को बहुत आकर्षित किया.
इसके बाद पीएम मोदी की लक्ष्मणराव से मुलाकात कुछ दिनों बाद फिर हुई. इस बार मोदी की मुलाकात Rss मुख्यालय के हेडगेवार भवन में हुईं. उस समय वकील लक्ष्मणराव वहीं रहते थे. इसके बाद पीएम मोदी अपने राजनैतिक गुरू के पास आ गए. पीएम मोदी अपने गुरू के सामने वाले कमरे में रहते थे. नरेद्र मोदी उस दौरान प्रचारकों के लिए चाय बनाते थे और पूरे कांम्प्लेक्स की सफाई करते थे. इसके अतिरिक्त पीएम अपने गुरू की सेवा किया करते थे. उन्होंने करीब 1 साल तक पूरी सिद्दत से अपने गुरू की सेवा की.
इसका असर ये हुआ की मोदी को अपने गुरू के हावभाव और क्रियाकलापों का अध्ययन करने का अच्छा मौका मिला. लक्ष्मणराव बहुत पढ़ाई किया करते थे और ताजा जानकारी के लिए रेडियो सुना करते थे. इसके साथ ही वो खो-खो और प्राणायाम भी नियमित रूप से किया करते थे. दोस्ताना स्वाभाव और उनके सहजपन का असर नरेंद्र मोदी के भीतर भी आ गया. उन्होंने मोदी को 1972 में औपचारिक तौर पर संघ के प्रचारक की कमान सौंप दी.
मोदी को कमान सौंपने के कुछ ही सालों के बाद 1985 में लक्ष्मणराव का निधन हो गया. साल 2008 में मोदी ने संघ सहित 16 महान हस्तियों की आत्मकथा का संकलन करवाया. जिसमें उन्होंने उदाहरण देकर बताया था कि किस तरह वकील लक्ष्मणराव लोगों को समझाया करते थे.
उन्होंने इस संकलन में एक वाकये का जिक्र करते हुए लिखा है कि लक्ष्मणराव ने एक बार Rss से खफा एक श्रोता को अपने प्रभावशैली वक्तव्यों से राजी कर लिया. उन्होंने उसे एक लकड़ी का उदाहरण देते हुए कहा था कि अगर तुम बजा सकते हो तो यह बांसुरी है वरना सिर्फ लकड़ी है.
नरेंद्र मोदी के घर छोड़ने और अहमदाबाद आने के दौरान लक्ष्मणराव ने एक पिता के तौर पर मोदी का साथ दिया था.
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