जानकी जयंत मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की अर्धांगिनी सीता माता की जयंती हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, इसे जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखकर जानकी माता सीता जी का पूजन करने से उपासक को हनुमान जी की तरह चिरंजीवी होने आशीर्वाद मिलता हैं । आइये जानते हैं कि जानकी माता को कैसे प्रसन्न कर उनसे आशीर्वाद पा सकें.
जानकी जयंती में ऐसे करें पूजा-
सीता माता को प्रसन्न करने के लिए माता की मूर्ति या फिर तस्वीर या फिर रामदरबार को एक लाल रंग के आसन पर स्थापित कर दें. सीता माता के पूजन के लिए पीले फूल, सोलह श्रृंगार का सामान आदि उन्हें अर्पित करें. इन्हें करने के बाद माता के लिए मंत्रों का उच्चारण 108 + 108 जरूर करें
इन मंत्रों का करें उच्चारण
सीता माता की आराधना करते समय।। ऊँ श्री सीतायै नमः, ऊँ श्री सीता-रामाय नमः ।। मंत्र का उच्चारण करें. इसके साथ ही माता की पूजा के लिए सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त का समय निश्चित है. इस दौरान पूजा करने से जीवन की समस्त समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है. वहीं, इस दिन शादी-शुदा महिलाएं अगर सीता माता की पूजा करती हैं तो उनके जीवन से सारी समस्याएं खत्म हो जाती हैं और जीवन सुखमय बन जाता है
जानकी माता का नाम सीता कैसे पड़ा-
वैशाख शुक्ल नवमी को सीता नवमी या जानकी जयंती के नाम से जानते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल की नवमी को सीता माता का जन्म हुआ था। पौराणिक कथाओं और शास्त्रों में पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में जब मिथिला के राजा जनक संतान प्राप्ति के लिए खेत जोत रहे थे, तभी पृथ्वी के गर्भग्रह से एक सुन्दर बालिका का जन्म हुआ. जिस हल से जमीन को जोता जाता है उसकी नोक को और जमीन को मिथिला में सीता कहा जाता था, जिसके चलते पृथ्वी में जन्मी इस बालिका का नाम सीता रखा गया.
जानकी जयंती कथा-
जानकी जयंती की पौराणिक कथा के आधार पर मारवाड़ क्षेत्र में देवदत्त नाम के एक ब्राह्मण रहते थे. देवदत्त की पत्नी का नाम शोभना था. ब्राह्मण जीविकोपार्जन के लिए अपने गांव से दूसरे गांव में भिक्षा की तलाश के लिए गए हुए थे. वहीं, देवदत्त की पत्नी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई.
पूरे गांव में उसके कुकर्मों की चर्चा होने लगीं. ऐसा कहा जाता है कि महिला ने पूरे गांव को जला दिया. काफी समय बाद उस महिला को अपने कर्मों का फल मिला. उसे कुष्ठ रोग हो गया और वो आंख से अंधी हो गई. इस प्रकार वो अपने कर्म के योग से इधर उधर भटकने लगी.
एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन जानकी जयंती थी. उस दिन जानकी माता उस महिला के सारे पापों को माफ करने वाली थी. इस पावन पर्व में भूख-प्यास से व्याकुल वह दुखियारी खाने के लिए प्रार्थना करने लगी. दुखियारी महिला प्रार्थना करते हुए श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार फूलों से सजे स्तंभों से गुजरती हुई उस भवन के अंदर चली गई.
तभी, एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो जानकी जयंती है, आज अन्न का दान नहीं किया जाता है. ऐसा करने पर पाप लगता है.
कल पारणा करने के समय आना, ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा, किंतु वो महिला अपनी जिद पर बनी रही. जिससे परेशान होकर उस भक्त ने महिला को तुलसी एवं जल दे दिया. जिसको ग्रहण करने के बाद दुखियारी भूख से मर गई. लेकिन उसकी इस भूल के चलते उसने सीता जयंती का व्रत पूरा कर लिया.जिसके बाद जानकी माता ने उसके सारे पापों से मुक्त कर लिया. इस व्रत के प्रभाव से वो सारे पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में आनंदपूर्वक अनंत वर्षों तक रही। इसके बाद वो महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से प्रसिद्ध हुई। उसने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई. इसलिए, जानकी जयंती में जो भक्त सच्ची श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं उन्हें सभी प्रकार का सुख मिलता है.