Chhath Puja 2019 : क्या है छठ पूजा का सही तरीका और जानिए क्या है इस महापर्व की पावन कथा
Chhath Puja 2019 : दिवाली के कुछ दिनों बाद आने वाले सबसे बड़े महापर्व को छठ पूजा के नाम से जाना जाता है. इस दौरान सूर्य देव और उनकी बहन स्वरूप छठी मईया की पूजा-आराधना की जाती है. सदियों से मनाए जाने वाले इस पर्व को पूर्वांचल के लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं.
जैसे-जैसे पूर्वाचल के लोग पूरे देश में फैले वैसे ही उन्होंने ये पर्व पूरे देश में बड़े धूम-धाम से मनाया जाने लगा. हिंदूओं के इस पर्व को पूरे 4 दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. तो आईये चलते हैं एक दिलचस्प यात्रा में जहां हम जानेंगे कि इस महापर्व में छठी मईया और सूर्य देव की आराधना कैसे की जाती है.
कैसे मनाते हैं छठ-पूजा
नहाय-खाय छठ पूजा
4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरूआत नहाय खाय के साथ होती है. नहाया खाय यानि छठ पूजा की पहले दिन की शुरूआत. इस महावर्व का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है. इस दिन घर की साफ-सफाई कर भगवान के निमंत्रण के लिए पवित्र बनाया जाता है.
घर की साफ-सफाई के बाद छठव्रती स्नान किया जाता है. इसके बाद शाकाहारी खाना खाकर व्रत का शुभारंभ किया जाता हैं. नहाय खाय वाले दिन कद्दू, चने की दाल और चावल घर में बनाया जाता है.
लोहंडा और खरना छठ पूजा
छठ पूजा के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी का दिन होता है. इस दिन भी सफाई का पूरी तरह ध्यान रखा जाता है. भक्तगण सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर भगवान की पूजा करते हैं. दिनभर उपवास रखने के बाद इस दिन शाम को पूजा-पाठ कर शाम को भोजन किया जाता है. शाम के वक्त किए जाने वाले भोज को खरना कहा जाता है. प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर खरना के लिए आस-पास के लोगों को बुलाया जाता है.
बताते चलें कि खरना गन्ने के रस में बनी चावल की खीर होती है. जिसके साथ चावल का पिठ्ठा और रोटी घी लगाकर खाया जाता है. इस प्रसाद में नमक और चीना का उपयोग नहीं किया जाता है. हालांकि समय के साथ लोग चीनी का उपयोग करने लगे हैं लेकिन इसका उपयोग बिलकुल भी नहीं किया जाना चाहिए.
छठ पूजा संध्या-अर्घ्य
इस पर्व की खास बात ये है कि इस पूरे पर्व के दौरान बनने वाले व्यंजनों का स्वाद बड़ा ही बेहतरीन होता है. कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानि छठ के तीसरे दिन प्रसाद में ठेकुआ बनाया जाता है. कई जगहों पर टिकरी भी कहा जाता है. वहीं चावल के लड्डू आदि के साथ फलों को प्रसाद में शामिल किया जाता है.
वहीं, उपवास रखने वाले भक्त शाम के वक्त शाम बाँस की टोकरी में अर्घ्य के सूप के सजा लेते हैं इसके बाद परिवार तथा पड़ोसियों के साथ डूबते सूरज को अर्घ्य देने घाट की ओर जाते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देकर छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है.
छठ पूजा उषा अर्घ्य
इस पर्व का चौथा और आखिरी दिन उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है. इस दिन सूर्य भगवान की पूजा की जाती है. उपवास रखने वाले लोग इस दिन उसी घाट में दोबार से आते हैं जहां शाम को अर्घ्य दिया गया था. फिर से सूरज भगवान की विधवत पूजा की जाती है.
इसके बाद पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं. इसके बाद कच्चा दूध और मीठा शरबत पीकर प्रसाद खाते हैं. प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही व्रत संपन्न हो जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को पारण कहते हैं.
छठ-पूजा कथा 2019
छठ पूजा कैसे शुरू हुई ये अभी तक साफ नहीं हो पाया है. छठ मनाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं. पुराण में छठ पूजा मनाने के पीछे राजा प्रियंवद की कहानी के बारे में बताया गया है. इस प्रचलित कहानी में बताया गया है कि राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी. उस दौरान महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा से यज्ञ करावाया था.
महर्षि ने प्रियंवद की पत्नी मालिनी को पुत्र प्राप्ति के लिए खीर बनाकर दी थी. इस खीर को खाने के बाद रानी को पुत्र की प्राप्ति तो हुई लेकिन वो मरा पैदा हुआ. पुत्र खोने के वियोग में जब प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए तो वो खुद अपने प्राण त्यागना चाह रहे थे. उसी समय देवसेना प्रकट हुई. उन्होंने राजा से कहा कि वो पूरे संसार की मूल प्रवृति के छठे अंश से पैदा हुई हैं.
इसलिए अगर राजा उनकी पूजा करते हैं तो राजा को संतानोत्पत्ति हो सकती है. राजा ने देवी की बात मानकर सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा आराधना की. जिसके बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई. ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी जिसके बाद से ही छठ पूजा मनाई जाने लगी.
छठ-पूजा रामायण कथा 2019
वहीं दूसरी कहानी रामायण काल से ली गई है. पौराणिक कहानियों के मुताबिक भगवान राम और सीता के 14 सालों के वनवास के बाद जब वो अयोध्या लौटकर आए तब उन्होंने रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए यज्ञ करवाया.
इस यज्ञ का नाम राजसूर्य रखा गया था. इस पूजा पाठ के लिए उन्होंने मुग्दल महार्षि को बुलाया था. ये पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन सूर्यदेव की आराधना कर सम्पन्न हुई. इस यज्ञ के दौरान ही मुग्दल ऋषि ने सीता माता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया था. वहीं सीता माता ने भी मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर सूर्यदेव की पूजा आराधना की थी.
छठ-पूजा महाभारत कथा 2019
जबकि तीसरी मान्यता के अनुसार इस पर्व की शुरूआत महाभारत काल में हुई. आपने महाभारत में दानी कर्ण का नाम सुना होगा. कर्ण सूर्यदेव के परम भक्त थे. रोजाना पानी में खड़े होकर वो सूर्यदेव की पूजा किया करते थे. सूर्य के समान उन्हें तेज मिला और वो महान योद्धा बन गए. बतातें चलें कि छठ पर्व में अर्घ्य दान की शुरूआत यहीं से हुई है.