क्या देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ सकता है ‘मुद्रा लोन’
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में संसद में एक रिपोर्ट सौंपी थी.इस रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि देश में जहां कारपोरेट लोन से हो रहे नॉन परफार्मिंग एसेट (एनपीए) एक बड़ी समस्या है, वहीं आने वाले समय में सरकार को कर्ज मांफी और क्रेडिट लक्ष्य से होने वाली समस्या का सामना करना पड़ सकता है.उन्होंने सरकार को इन गतिविधियों से बचने की सलाह दी है.
उन्होंने मुद्रा लोन को संभावित क्रेडिट जोखिम के तहत रखा. उन्होंने कहा कि एक साथ लोगों के कर्ज माफ करने से सरकार को भले ही लोगो से वाहवाही मिल जाए लेकिन आने वाले समय पर अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ सकता है. इसी के साथ उन्होंने कहा की सरकार ऐसी नीतियों से भले ही क्रेडिट लक्ष्य पा ले लेकिन इससे भविष्य में एनपीए के रास्ते खुल जाएंगे.संसदीय समिति को उन्होंने बताया कि मुद्रा लोन और किसान क्रेडिट लोन लोकप्रिय है, जिससे इसमें एनपीए की भी संभावनाए ज्यादा रहती है.सरकार को इस खतरे से बचने के लिए इस पर बारीकी से निगरानी करनी पड़ेगी.
बता दें, 2015 में केंद्र सरकार ने गैर कारपरेट व्यापार को विकसित करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत मुद्रा योजना जारी की थी.इस योजना का उद्देश्य छोटे व्यापारी जैसे दुकानदार, फल और सब्जी बेचनेवाले, ट्रक और टैक्सी चलाने वाले लोगों को लोन देकर उनका विकास करना था.वहीं, मुद्रा योजना के तहत तीन तरह के लोन दिए जाते हैं-शिशु,किशोर और तरुण.ये कर्ज 50 हजार से लेकर 10 लाख तक दिए जाते हैं.इस योजना के तहत 2017-18 के दौरान करीब 2 लाख 53 हजार करोड़ का लोन दिया गया. इसमें औसतन लोन 52,706 रुपए का दिया गया.
हाल ही में देश की सबसे बड़ी बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने कहा था ही उसने 2018 के वित्तीय वर्ष में 28,556 करोड़ लोन दिया.जिससे इस बैंक का एनपीए करीब 5.2 प्रतिशत बढ़ गया. वहीं आलोचकों का कहना है कि इस योजना के तहत सरकार द्वारा कई खामियों को नजरअंदाज भी किया गया.
इसी साल सीबीआई ने मुद्रा लोन के तहत पंजाब नेशनल बैंक के एक पूर्व कर्मचारी को 65 लाख के लोन गलत तरह से मंजूरी देने का मामला दर्ज किया था.देश में इस तरह के लोन की वापसी बैंकों के लिए एक बहुत बड़ा चैलेज होता हैं.मुद्रा लोन में सबसे पहला खतरा इनकी असुरक्षा है, असुरक्षा का मसला इन लोन में इसलिए होता है क्योंकि इसमें बैंक लोन लेने वाले शख्स से कोई भी गारंटी नहीं लेता है.
इसी के साथ दूसरी बड़ी समस्या ये है कि ये लोन छोटे कारोबारियों के लिए है. जिनका व्यापार लगातार सालभर नहीं चलता है, जैसे अगर कोई सब्जी वाला बैंक से कुछ लोन लेता है तो उसे लौटाने के लिए उसका व्यापार लगातार चलते रहना चाहिए लेकिन सालभर तक उसका व्यापार उसका चलना मुश्किल होता है और वो दूसरी जगह दूसरा व्यापार करने लगता है.वहीं बैंकिंग सेक्टर के कर्मचारियों को ऐसे लोन को लेना बहुत मुश्किल हो जाता है. जाहिर है जब बैंक लोन रिकवर नहीं कर पाएगा तो बैंकिंग सेक्टर का एनपीए और ज्यादा बढ़ जाएगा, जिसके चलते देश की अर्थव्यवस्था भी डगमगा सकती है.