IAS Devesh kumar dhruw : लगातार 4 बार असफलता मिलने पर परिवार ने बढ़ाया बेटे का हौसला, 47वीं रैंक हासिल कर बनें IAS अधिकारी

IAS Devesh kumar dhruw : लगातार 4 बार असफलता मिलने पर परिवार ने बढ़ाया बेटे का हौसला, 47वीं रैंक हासिल कर बनें IAS अधिकारी

IAS Devesh kumar dhruw : व्यक्ति के जीवन में एक समय होता है जब वो ऊर्जा से भरा होता है और अपनी मंज़िल के पीछे चल पड़ता है। इसी दौड़ में वो अपनी सारी ऊर्जा झोंक देता है, ताकि वो कामयाब हो जाए. लेकिन जब यही ऊर्जा खत्म होने लगती है जब लगातार कड़ी मेहनत करके भी वो मंज़िल से हासिल नहीं कर पाता है. जिसके बाद वो अपनी मंजिल से भटक जाता है. लेकिन आज हम आपको जिस IAS अधिकारी के बारे में बताने जा रहे हैं उन्होंने यूपीएससी परीक्षा के कई प्रयासों में असफलता का सामना किया लेकिन अपनी मंजिल से भटके नहीं और फिर सफलता हासिल कर ली.

इस IAS अधिकारी का नाम देवेश कुमार ध्रुव है. हालांकि इस दौरान उनके परिवार ने देवेश का बहुत साथ दिया. परिवार का साथ पाकर उन्होंने अपनी मंजिल हासिल कर ली. देवेश की कहानी ऐसे युवाओं के लिए प्रेरणा हो सकती है जो एक या दो प्रयासों में असफलता मात्र से ही अपनी मंजिल से भटक जाते हैं. आइए जानते हैं उनके यूपीएससी परीक्षा के सफर के बारे में

कौन हैं (Devesh kumar dhruw IAS) देवेश कुमार ध्रुव

देवेश छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पचपेड़ी क्षेत्र के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई पचपेड़ी से ही हुई. बचपन से ही कुशाग्र बुद्दि के देवेश पढ़ाई में काफी अच्छे थे. हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में उन्होंने अच्छे अंक हासिल किए. 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने IIT-JEE की तैयारी शुरू कर दी. यहां भी उन्हें सफलता हासिल हो गई.

IAS Devesh kumar dhruw : लगातार 4 बार असफलता मिलने पर परिवार ने बढ़ाया बेटे का हौसला, 47वीं रैंक हासिल कर बनें IAS अधिकारी 1

जिसके बाद उन्होंने IIT- खड़गपुर से ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने मन बनाया और साल 2012 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली. इसके बाद देवेश पूरी तरह से UPSC परीक्षा की तैयारी में जुट गए. अपनी स्ट्रेटेजी के अनुसार देवेश ने पहले डिग्री हासिल की फिर उसके बाद ही UPSC की ओर कदम रखा और तैयारी शुरू कर दी।

मुश्किल था यूपीएससी परीक्षा का सफर

साल 2013 में देवेश ने पहला प्रयास किया जिसमें ये प्रारंभिक परीक्षा में ही रेस से बाहर हो गये। इसके बाद अगले ही साल इन्होंने दोबारा परीक्षा दी लेकिन इस बार भी उन्हें सफलता हासिल नहीं हो पाई. शुरुआत के अपने दोनों प्रयासों के दौरान ध्रुव ने कुछ विषयों की कोचिंग भी ली. किसी कोचिंग संस्थान में पढ़ाई करना या ना करना दोनों अपनी जरूरत के हिसाब से चुनना चाहिए.

कुछ अभ्यर्थी बिना कोचिंग की मदद के भी यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल कर लेते हैं. साल 2015 और 2016 में ध्रुव ने अपना तीसरा और चौथा प्रयास किया इनमें भी वो मेंस की दौड़ तक पहुँचे और वहाँ से बाहर हो गए. जिसके बाद उन्हें लगने लगा कि UPSC परीक्षा में वो सफल हो पाएंगे या नहीं. हालांकि इस दौरान इनके परिवार ने इनको मानसिक रूप से काफी मजबूती दी और मोटिवेट किया.

47वीं रैंक हासिल कर बने IAS अधिकारी

देवेश बताते हैं कि UPSC परीक्षा का सफर उनके लिए बिलकुल आसान नहीं था. लेकिन कड़ी मेहनत, सटीक रणनीति और लगन की बदौलत उन्होंने upsc परीक्षा में सफलता हासिल कर ली. उन्होंने अपने आखिरी प्रयास में 47वीं रैंक हासिल की और आईएएस अधिकारी बन गए. वो कहते हैं कि अभ्यर्थियों को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए. यह परीक्षा व्यक्ति की कैपेबिलिटी का टेस्ट है.

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किसी भी शख्स अपने आप को कितना तैयार कर सकता है और इस तैयारी के लिए वो बेसिक किताबों जैसे NCERT की किताबें कुछ अन्य स्टैंडर्ड किताबें और अख़बार की रीडिंग को सजेस्ट करते हैं और पढ़ाई के साथ-साथ मेडिटेशन करने की भी सलाह देते हैं, जिससे अभ्यार्थी तनावमुक्त होकर तैयारी कर सके और परीक्षा दे सके। अपनी स्ट्रेटजी पर आखिरकार पांचवें प्रयास में 47वीं रैंक प्राप्त करके सफल होने के बाद उनको छत्तीसगढ़ कैडर मिला। देवेश की इस कहानी बताती है कि जब व्यक्ति दृढ़-निश्चय कर लेता है और हार न मानने की रट लगा लेता है, तो आज नहीं तो कल उसे कामयाबी मिल ही जाती है।

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