‘नागालैंड के गांधी’ नटवर ठक्कर को क्यों दिया गया था पद्मश्री अवार्ड
गांधीवाद के प्रखर समर्थक नटवर ठक्कर की रविवार को एक अस्पताल में देहांत हो गया. नटवर ठक्कर को नागालैंड का गांधी कहा जाता था.उनके बेटे डा. आओतोषी ने बताया कि 19 सितंबर को उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था. जहां, उनकी हालत में थोड़ा सुधार हुआ लेकिन अचानक ब्लड प्रेशर डाउन हुआ और उनकी किडनी ने जवाब दे दिया. 86 साल के नटवर अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते थे. नटवर की पार्थिव शरीर को नागालैंड के चुचुयिमलांग में रविवार को लाया जाएगा.
कौन हैं नटवर ठक्कर
नटवर ठक्कर भले ही महाराष्ट्र के हो लेकिन उनको उनकी प्रसिद्धी उनकी कर्मस्थली नागालैंड में ही मिली. लोग उनकों नटवर भाई के नाम से बुलाते थे. 23 साल की उम्र होते होते उन्होंने नागालैंड के हालात सुधारने के लिए महाराष्ट्र छोड़ दिया.उन दिनों नागालैंड अलग ही मुसीबत से गुजर रहा था. नागालैंड में 1955 के दौर में अलगावादियों का बोलबाला था. जिसपर देश की आर्मी और नागा विद्रोहियों के बीच में लड़ाई चल रही थी. नागा विद्रोही हर भारतीय को आर्मी का खुफिया एजेंड मानते थे.
उसी समय नटवर ठक्कर चुचुयमलांग गांव पहुंचे. जहां वहां के अलगावादियों ने इन्हें गांव में ना आने की धमकी दी. वहीं गांव के लोगों को भी भड़का दिया.उन्हें नागा विरोधी बता दिया. शुरूआती समय में उन्हें उस गांव में जाने में थोड़ी समस्या हुई लेकिन कहते है आपके काम की सच्चाई ही आपको सफलता दिलाती है. नटवल के साथ भी यही हुआ. जब उन्होंने गांव के लोगों को रोजगार और स्वरोजगार के नए-नए तरीके सुझाए. तो, लोगों ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया. उसी समय नटवर ठक्कर ने चुचुयमलांग में एक गांधी आश्रम भी बनाया.
तभी से उन्हें नागालैंड के गांधी की उपाधि मिल गई.उनकी देश के लोगों के प्रति सच्ची सृद्धा के चलते उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया.ऐसा भी कहा जाता है कि गांव के लोगों और आर्मी के बीच बातचीत के जरिए रास्ता निकालने वाले का श्रेय इन्हीं को जाता है.