Success Story Of IPS Ilma Afroz : लोगों के घरों में जूठें बर्तन धोने से लेकर IPS बनने का सफर, पढ़ें इल्मा अफरोज के संघर्ष की कहानी
Success Story Of IPS Ilma Afroz : 2007 में आई शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की एक फिल्म, जिसका एक फेमस डायलॉग था ‘अगर किसी चीज को सिद्दत से चाहो तो उसे मिलाने में सारी कायनात आपके साथ होती है’. आज की सक्सेस स्टोरी में हम एक ऐसी कहानी के बारे में आपको बताएंगे जिस कहानी के लिए ये डॉयलॉग एकदम फिट बैठता है.
यूपी के एक शहर मुरादाबाद के छोटे से गांव की एक लड़की जिसने खेतों में काम किया और लोगों के घरों के बर्तन भी साफ किए. लेकिन अपने जज्बे को किसी भी कीमत में कम नहीं होने दिया. एकाग्र लक्ष्य और कड़ी मेहनत ने उसके सपनों को आईपीएस ऑफिसर बनाया..
छोटे से गाँव कुंदरकी की रहने वाली इल्मा अफ़रोज़ की कहानी उन मेहनत करने वाले लोगों में से एक है, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन की बदौलत UPSC जैसी कठिन परीक्षा को पास किया. इल्मा अफ़रोज़ की गरीबी के दिनों को देखकर कोई ये नहीं मान सकता कि वो इतने अच्छे स्कूलों में पढ़ी होंगी. उन्होंने दिल्ली के स्टीफेन्स कॉलेज से लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में पढ़ाई की. लेकिन देश के लिए कुछ करने की इच्छा ने उन्हें दोबारा से देश की सेवा करने को मजबूर कर दिया. इसके बाद उन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास की.
14 साल की उम्र में हुआ पिता का निधन
इल्मा जब 14 साल की थी, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई. असमय पिता की मृत्यु ने उनके जीवन में जिम्मेदारियों को बढ़ा दिया. जिस समय इल्मा के पिता की मृत्यु हुई उस समय 2 साल छोटा भाई भी उनके साथ ही था. घर में आई मुसीबतों ने इल्मा की मां को संशय में डाल दिया. इल्मा ने एक साक्षात्कार में बताया था कि किस तरह परिवार और रिश्तेदारों ने उनकी मां को लड़की की पढ़ाई में पैसे ना बर्बाद करने की सलाह दी गई थी. लेकिन उनकी मां ने समाज की बातों में ना आकर बेटी की पढ़ाई में पैसा लगाया.
मां ने बेटी के दहेज के लिए जो भी जमा पूंजी रखी थी सारी पूंजी को पढ़ाई में लगा दिया. हालांकि ऐसा करने से उन्हें काफी लोगों की बातों को सुनना पड़ा. इल्मा ने अपनी हायर स्टडीज स्कॉलशिप के माध्यम से की. इल्मा जब ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज गई, तब उनकी मां को काफी बातें सुननी पड़ी. लोगों ने कहा कि बेटी अब हाथ से निकल जाएगी, समाज में परिवार की बेज्जती करवा देगी आदि.
लोग उनकी मां को बहकाने की कोशिश कर रहे थें.उधर बेटी दिल्ली से अमेरिका का सफऱ तय कर रही थी. इल्मा ने मास्टर्स ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से किया. वहां पर उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ. आर्थिक तंगी ने उनका साथ विदेश में भी नहीं छोड़ा. इल्मा यूके (यूनाइटेड किंगडम) में अपने बाक़ी खर्चें पूरे करने के लिये बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही थी. इसके अलावा उन्होंने वहां पर छोटे बच्चों की देखभाल का काम भी किया. यहाँ तक कि लोगों के घर के बर्तन भी साफ किए.
कुछ दिनों के बाद इल्मा एक वॉलेंटियर प्रोग्राम में शामिल होने न्यूयॉर्क गयीं, जहाँ उन्हें बढ़िया नौकरी का ऑफर मिला. इल्मा चाहती तो विदेश में एक अच्छे करियर के साथ बेहतर जीवन बिता सकती थीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. एक साक्षात्कार उन्होंने देश में काम करने को लेकर बताया था कि “मुझ पर, मेरी शिक्षा पर पहले मेरे देश का हक़ है, मेरी अम्मी का हक़ है, अपनों को छोड़कर मैं क्यों किसी और देश में बसूं”
अपने शानदार कैरियर को छोड़कर वापस आ गयी
इल्मा जब न्यूयॉर्क से वापस अपने गांव आईं तब गांव के लोग उनसे मिलने आते थे. गांव के लोग एक उम्मीद लेकर आते कि इल्मा विदेश से पढ़कर आईं हैं. उनकी सारी समस्याओं का निपटारा करवा सकती हैं. यहां तक कि किसी को जाति और निवास प्रमाण पत्र बनवाना होता तो इल्मा के पास आता और उनसे इसे तैयार करने की अपील करता. इल्मा को तभी यूपीएससी का ख्याल आया.
उन्हें लगा कि वो इस क्षेत्र में सेवा देकर अपने सपनों को साकार कर सकती हैं. इसके बाद इल्मा यूपीएससी की तैयारी में जुट गयी. साल 2017 में उन्होंने 217वीं रैंक के साथ 26 साल की उम्र में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। जब सर्विस चुनने की बारी आयी तो उन्होंने आईपीएस चुना। बोर्ड ने पूछा भारतीय विदेश सेवा क्यों नहीं तो इल्मा बोली, “नहीं सर मुझे अपनी जड़ों को सींचना है, अपने देश के लिये ही काम करना है”. इल्मा की कहानी देश की उन सभी लड़कियों या लड़को के लिए है जो हालात के आगे हार नहीं मानते हैं.