Garima agrawal ias : हिंदी मीडियम से पढ़ाई कर पहले ही प्रयास में पास की यूपीएससी परीक्षा, 40वीं रैंक पाकर बनी आईएएस

Garima agrawal ias : हिंदी मीडियम से पढ़ाई कर पहले ही प्रयास में पास की यूपीएससी परीक्षा, 40वीं रैंक पाकर बनी आईएएस

Garima agrawal ias : यूपीएससी परीक्षा को देश की सबसे कठिन परीक्षा के तौर पर देखा जाता है. हर साल लाखों की तादात में अभ्यार्थी इस परीक्षा में सफलता पाने के लिए कोशिश करते हैं. लेकिन उनमें से कुछ ही छात्र ऐसे होते हैं जिन्हें सफलता मिल पाती है. ऐसे में इस परीक्षा में बार-बार सफल होना किसी उपलब्धि से कम नहीं है. कड़ी मेहनत और लगन की बदौलत इस परीक्षा में परीक्षार्थी सफलता हासिल कर लेते हैं.आज हम आपको जिस आईएएस अधिकारी के बारे में बताने जा रहे हैं उनका नाम गरिमा अग्रवाल है.

उन्होंने इस कठिन परीक्षा में एक बार नहीं बल्कि कई बार सफलता हासिल की. हिंदी मीडियम से पूरी पढ़ाई करने के बाद भी उन्होनें इस परीक्षा को पहली बार में ही पास कर लिया. कमाल की बात ये भी है कि उन्होंने जितनी बार इस परीक्षा को पास किया उन्हें अच्छी रैंक ही हासिल हुई. ऐसा नहीं है कि उन्होंने बिना किसी संघर्ष के सफलता हासिल की हो. गरिमा ने भी अपने जीवन में बहुत संघर्ष किए. आइए जानते हैं गरिमा के आईएएस अधिकारी बनने के सफर के बारे में

कौन है (Garima agrawal ias) आईएएस गरिमा अग्रवाल

मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में रहने वाली गरिमा एक मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखती हैं. गरिमा के पिता का नाम कल्याण अग्रवाल है और माता का नाम किरण अग्रवाल है. पिता एक व्यवसायी है और मां घर संभालती हैं. साल 2013 में गरिमा की बड़ी बहन प्रीति अग्रवाल का यूपीएससी परीक्षा में सिलेक्शन हो गया था. फिलहाल उनकी बड़ी बहन इंडियन पोस्टल सर्विस में सेवा दे रही है. प्रीति के पति शेखर गिरिडीह भी आईआरएस अधिकारी हैं. परिवार के इतने ज्यादा लोगों के अधिकारी होने पर गरिमा के ऊपर अधिकारी बनने का दबाव आ गया.

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उनकी शुरुआती पढ़ाई खरगोन के ही स्कूल से हुई. बचपन से ही पढ़ाई में अच्छा होने के कारण उन्हें काफी प्रोत्साहन भी मिला. मध्य प्रदेश स्टेट बोर्ड की 10वीं क्लास में उन्हें 92 फीसद अंक और 12वीं में 89 फीसद अंक हासिल हुए थे. इतना ही नहीं बोर्ड रिजल्ट में अच्छे नंबर आने के कारण उन्हें रोटरी इंटरनेशनल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत 1 साल के लिए हायर सेकेंडरी एजुकेशन अमेरिका में पढ़ाई करने का मौका भी मिला था.

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स्कूल की पढ़ाई के बाद उन्होंने आईआईटी जेईई का एग्जाम दिया. इस परीक्षा में में वो सेलेक्ट हो गई. इसके बाद उन्होंने आईआईटी हैदराबाद से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और जर्मनी जाकर इंटर्नशिप की. जर्मनी में इंटर्नशिप के बाद उन्हें अच्छे खासे वेतन के साथ नौकरी मिल रही थी. लेकिन देश सेवा और देश में काम करने की इच्छा रखते हुए उन्होंने उस नौकरी को छोड़ दिया और भारत आकर यूपीएससी की तैयारी करने में जुट गई. यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर मेहनत की. गरिमा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि परिवार के लोगों का सिविल सर्विस में होने से फायदा मिलता है. लेकिन पढ़ाई के लिए आपको खुद ही मेहनत करनी पड़ती है. इस तरह पढ़ाई का संघर्ष आपका अपना ही होता है. इससे बचा नहीं जा सकता है और आप जितनी मेहनत करते हैं उतनी ही सफलता आपको हासिल होती है.

पहली बार में पास की यूपीएससी परीक्षा

यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए गरिमा मेहनत और लगन से पढ़ाई कर रही थी. उन्होंने डेढ़ साल के भीतर इस परीक्षा की तैयारी की. फिर साल 2017 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी. इस परीक्षा में उन्हें पहली बार में ही सफलता हासिल हो गई.

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गरिमा ने पहली बार में ही 241 वी रैंक हासिल की और आईपीएस अधिकारी का पद उन्हें मिल गया. गरिमा कहती हैं कि उनके बचपन का सपना था कि वह आईएएस अधिकारी बने. हालांकि आईपीएस अधिकारी का पद मिलने पर उन्हें संतोष तो था, लेकिन उन्हें आईएएस ज्यादा आकर्षित करते थे. जिसके बाद उन्होंने आईपीएस की ट्रेनिंग शुरू कर दी और इसके साथ ही आईएएस की तैयारी फिर से करने लगीं.

यूपीएससी परीक्षा में 40वीं रैंक से किया टॉप

साल 2018 में गरिमा अग्रवाल ने फिर से यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल की. इस बार उन्होंने यूपीएससी में 40वीं रैंक हासिल की. यूपीएससी परीक्षा में वो टॉप कर आईएएस अधिकारी बन गई. उनकी इस सफलता से परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. आईएएस अधिकारी बनने के साथ ही उनके बचपन का सपना भी पूरा हो गया.

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गरिमा बताती हैं की डिस्ट्रेक्शंस से बचने के लिए उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के दौरान सोशल मीडिया से संन्यास ले लिया था. गरिमा की सफलता उन छात्रों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है जो हिंदी मीडियम से पढ़ाई करते हैं. गरिमा ने पहले तो हिंदी मीडियम से पढ़ाई की और फिर अंग्रेजी में यूपीएससी की परीक्षा दी. वह कहती हैं कि उन्हें भाषा के बदलाव के चलते उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती थी. इसके लिए वह अंग्रेजी फिल्में, न्यूज़पेपर आदि पढ़ती थी. स्टडी मैटेरियल को अंग्रेजी भाषा में ही पढ़ती थी. इस बीच भाषा के बदलाव के चलते हैं उनको ज्यादा समय लगाना पड़ता था.

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