shweta agarwal ias : जिस बेटी के जन्म पर परिवार में नहीं मनाई गई खुशियां, उसी लड़की ने आईएएस अधिकारी बनकर किया परिवार का नाम रोशन
shweta agarwal ias : देश की महिलाएं आज पूरी दुनियां में भारत का नाम रोशन कर रहीं हैं. वो कदम से कदम मिलाकर पुरुषों के साथ दे रहीं हैं. इसमें सबसे बड़ी वजह है महिलाओं की शिक्षा और समाज में उनका समान अधिकार. एकतरफ परिवार के सहयोग से देश में महिलाएं जहां तरक्की कर रही हैं,वहीं कुछ पुरानी सोच रखने वाले लोगों की वजह से महिलाएं आज भी शिक्षा और समानता के आभाव में जीवन बिता रही हैं. हालांकि उनमें कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं जो अपनी जिद के आगे परिवार और सामाज को मजबूर कर देती हैं. आज हम आपको जिस महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, उनका जन्म भी एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ.
इस महिला आईएएस अधिकारी का नाम श्वेता अग्रवाल है.उन्होंने ना सिर्फ यूपीएससी परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत की बल्कि कदम-कदम पर परिवार की रुढ़िवादी सोच का सामना भी किया. उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में अच्छी खासी रैंक हासिल कर टॉप किया और ये बता दिया कि अगर महिलाओं को समानता का दर्जा मिले तो वो भी परिवार का नाम रोशन कर सकती हैं. आइए जानते हैं श्वेता ने रुढ़िवादी सोच का सामना करते हुए कैसे यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल की.
कौन हैं (Shweta Agarwal ias) आईएएस श्वेता अग्रवाल
पश्चिम बंगाल के हूगली जिले में रहने वाली श्वेता अग्रवाल एक मारवाड़ी परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनका जन्म एक गरीब और रूढ़िवादी परिवार में हुआ था. एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि दादा-दादी और चाचा ने उनको पढ़ाई के लिए रोका था. उनका मानना था कि लड़कियां सिर्फ घरेलू काम करती हैं इसिलए उन्हें ज्यादा पढ़ाना नहीं चाहिए. हालांकि माता पिता कि सोच परिवार में सबसे अलग थी. उनकी बदौलत वो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकीं.
आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के बावजूद श्वेता के माता पिता ने उन्हें अच्छे अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाया था. श्वेता बचपन से ही पढ़ाई में काफी अच्छी थी. उन्होंने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर स्कूल में टॉप किया. बेसिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट में भी टॉप किया. फिर उन्होंने एमबीए की पढ़ाई पूरी की और एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने लगी. उनके परिवार में वो पढ़ाई में सबसे आगे निकल चुकी थी. इसके बाद वो यूपीएससी परीक्षा की तैयारी में जुट गई.
श्वेता के जन्म पर परिवार ने नहीं मनाई खुशियां
श्वेता ने एक साक्षात्कार में बताया था कि उनका जन्म पुरानी सोच वाले परिवार में हुआ था. परिवार की इस कमी का सामना उन्हें अपने करियर में हर कदम पर करना पड़ा. यहां तक कि जब उनका जन्म हुआ तो उनके परिवार में कोई खुश नहीं था. 28 लोगों के उनके परिवार में लड़कियों के जन्म पर खुशियां नहीं मनाई जाती हैं. इसिलए जब श्वेता का जन्म हुआ तो परिवार में कोई खुश नहीं था. परिवार के कुछ लोगों का मानना था कि लड़कियां परिवार के वंश को आगे बढ़ाने में मदद नहीं करती है.
इसके अलावा जब वो ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने जा रही थी तब उनके चाचा ने बेटियों को ना पढ़ाने की बात कही. उन्होंने कहा कि बेटियां तो घर का काम संभालने के लिए होती हैं. इन्हें पढ़ा-लिखाकर क्या हासिल होगा ? वहीं, उनके ऊपर तैयारी के दौरान शादी का दबाव भी पड़ा. यूपीएससी की तैयारी के दौरान जब वो असफल हो रहीं थी तब माता पिता ने शादी करने की सलाह दी. एकतरफ तो वो यूपीएससी परीक्षा में वो अच्छी रैंक हासिल नहीं कर पा रहीं थी दूसरी तरफ शादी का दबाव आने के बाद उन्होंने घर के पास ही एक किराए का कमरा लेकर तैयारी शूरू कर दी. यहां उन्होंने दिन रात एककर मेहनत से पढ़ाई की.
19वीं रैंक हासिल कर बनीं आईएएस अधिकारी
श्वेता बचपन से ही आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं. बचपन का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने पूरी मेहनत के साथ पढ़ाई की. साल 2014 में उन्होंने पहले प्रयास में ही यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल कर ली. पूरे देश में उन्होंने 497 रैंक हासिल की. रैंक कम होने की वजह से उन्होंने फिर से प्रयास किया. इसके बाद उन्होंने साल 2015 में दूसरी बार परीक्षा दी और 141वीं रैंक हासिल की. इस बार वो आईएएस बनने के लिए सिर्फ 10 नंबरों से पीछे रह गईं.
आईएएस अधिकारी बनने की उनकी जिद ऐसी थी कि उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया. 2 बार यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद भी टॉप रैंक ना आने पर उन्होंने तीसरी बार परीक्षा पास की. साल 2016 में उन्होंने 19वीं रैंक हासिल कर टॉप किया. इस रैंक के साथ वो आईएएस अधिकारी बन गई. इसी के साथ वो पश्चिम बंगाल की पहली ऐसी यूपीएससी टॉपर रहीं जिन्होंने टॉप 20 में अपनी जगह बनाई. मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के दम पर उन्होंने इसके साथ ही परिवार और समाज की उस विचारधारा को भी तोड़ दिया जिसमें माना जाता है कि महिलाओं की जिम्मेदारी सिर्फ परिवार संभालने की होती है. ऐसे समाज के लिए श्वेता एक प्रेरणा हैं.