Rakesh Sharma ias : 2 साल की उम्र में आंखों की रोशनी जाने के बाद लोगों ने कहा घर से निकाल दो, कड़ी मेहनत से यूपीएससी परीक्षा पास कर बना आईएएस अधिकारी

Rakesh Sharma ias : 2 साल की उम्र में आंखों की रोशनी जाने के बाद लोगों ने कहा घर से निकाल दो, कड़ी मेहनत से यूपीएससी परीक्षा पास कर बना आईएएस अधिकारी

Rakesh Sharma ias : अगर आपके भीतर कुछ बड़ा करने का जुनून और मेहनत करने का हौसला है तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है. आज हम आपको जिस आईएएस अधिकारी के बारे में बताने जा रहे हैं उनका जीवन इस बात की तस्दीक है कि अगर इच्छा शक्ति और मेहनत करने का जज्बा हो तो कोई भी सफलता हासिल की जा सकती है. इस आईएएस अधिकारी का नाम राकेश शर्मा है. बचपन से ही मुसीबतों का सामना करते हुए इन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास की.

जब ये 2 साल के थे, तभी इनकी आंखों की रोशनी चली गई. जिसके बाद इनके जीवन में अंधेरा छा गया था. इस दौरान कई लोगों ने इनके माता-पिता से बेटे को अनाथालय में छोड़ने की सलाह भी दी,लेकिन वो नहीं माने.अपने बुलंद हौसले और कड़ी मेहनत के बल पर राकेश ने ना सिर्फ यूपीएससी की परीक्षा पास की बल्कि अपनी सफलता से पूरी दुनिया को बता दिया की लगन और मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है. आइए जानते हैं कि कौन हैं राकेश शर्मा

कौन है (Rakesh Sharma ias) राकेश शर्मा

राकेश शर्मा हरियाणा के भिवानी जिले में स्थित एक छोटे से गांव सांवड़ के रहने वाले हैं. राकेश बचपन से दृष्टिहीन नहीं थे. वो जब 2 साल के थे तभी एक दवा के रिएक्शन से उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई. उनकी रोशनी जाने के बाद जीवन में अंधेरा सा छा गया था। हालांकि माता पिता ने राकेश को कभी ये एहसास न कराया कि वह दृष्टिहीन है। बेटे को अच्छी सुविधाएं मिल पाए इसलिए परिवार भिवानी के सेक्टर 27 में आकर रहने लगा। राकेश का परिवार पिछले 13 सालों इसी जगह रह रहा है। इस दौरान उनकी आंखों का इलाज हुआ लेकिन उससे कोई फायदा नहीं निकला।

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एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था की आसपास के कई लोगों ने उनके पिता को सलाह दी थी कि बेटे को अनाथालय या किसी आश्रम में छोड़ दें। लेकिन इसके बाद भी परिवार में राकेश का हौसला टूटने ना दिया और हर कदम पर उनका साथ दिया। उन्हें परिवार का साथ तो पूरी तरह से मिल रहा था लेकिन उनकी रोशनी की समस्या उन्हें हर कदम पर मुश्किल में खड़ा कर रही थीं। दृष्टिहीन होने के कारण उन्होंने आम बच्चों के स्कूलों में पढ़ाई नहीं की। उन्हें 12वीं तक एक खास स्कूल में पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। इस स्कूल में सारे बच्चे दृष्टिहीन ही होते थे।

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माता पिता बताते हैं की राकेश बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। खास स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। राकेश ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सोशल वर्क से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। राकेश बताते हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय में अच्छे शिक्षकों और सहपाठियों की वजह से उन्हें अपनी प्रतिभा तराशने का सही मौका मिला। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ना सिर्फ अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की बल्कि क्रिएटिव एक्टिविटीज समेत जीवन के कई पहलुओं को बारीकी से समझा भी. जिसकी वजह से उनके भीतर भी समाज के लिए कुछ बड़ा और बेहतर करने की इच्छा हुई

बच्चों की मदद के लिए शुरू की यूपीएससी की तैयारी

एक साक्षात्कार में राकेश शर्मा कहते हैं कि जब वो दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे तब उनके पास एक लड़का अपने घर से भाग कर आया। वो किसी कारणवश अपने परिजनों से नाराज हो गया था. राकेश ने ना सिर्फ उसको अपने पास रखा बल्कि उसे काफी समझाया. उनकी बात मानकर वो लड़का वापस अपने घर चला गया। इसके बाद लड़के के माता पिता ने राकेश से आकर मुलाकात की. बेटे को पाने की खुशी में उन्होंने राकेश को दुआएं दीं. राकेश को लड़के के परिजनों के चहरे पर खुशी देखकर बहुत अच्छा लगा. उन्होंने सोचा क्यों ना और भटके हुए बच्चों की मदद करके उनके परिवार में खुशियां वापस लाई जा सके। बस इसी सोच के साथ उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।

स्टडी मैटेरियल मिलने पर हुई परेशानी

दृष्टिहीन होने की वजह से राकेश को स्टडी मैटेरियल ढूंढने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. वो कहते हैं नार्मल लोगों के लिए तो इंटरनेट, कोचिंग नोट्स और किताबों आदि का भंडार है. लेकिन जो लोग देख नहीं सकते हैं उन्हें काफी मुश्किल का सामना करना पड़ता है. हालांकि कड़ी मेहनत और लगन के बल पर वो दिन रात यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करते रहे. इस दौरान उनके परिवार, सहपाठियों और अध्यापकों ने बहुत साथ दिया.

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उन्होंने हमेशा राकेश का हौसला बढ़ाया और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया. वो कहते हैं कि बचपन में परिवार ने मुझपर दया ना दिखाई होती तो आज मैं कुछ और ही होता. इस परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यार्थियों को सलाह देते हैं कि इस परीक्षा में हिम्मत रखकर पढ़ाई करना चाहिए. इसे किसी कठिन पर देखने की बजाय आम परीक्षा की तरह ही देखना चाहिए.

608वीं रैंक पाकर बनें आईएएस अधिकारी

अपनी कड़ी मेहनत और लगन के बल पर उन्हें साल 2018 की यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल हो गई. उन्होंने ये सफलता अपने पहले प्रयास में ही हासिल कर ली. यूपीएससी परीक्षा में उन्हें 608वीं रैंक हासिल हुई. अगर ठान लिया जाए तो दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं जिसे न किया जा सके. यूपीएससी या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं को वो सलाह देते हैं कि अपनी कमी को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए. आत्मविश्वास के दम पर आप कोई भी परीक्षा पास कर सकते हैं

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