IPS Premsukh delu : गरीब किसान का बेटा जिसने 6 साल में पास की 12 सरकारी नौकरी, स्नातक में गोल्ड मेडल पाकर बना IPS अधिकारी
IPS Premsukh delu : अगर आप एकाग्र होकर मेहनत करते हैं तो आपकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो आप आसानी से सफलता पा सकते हैं. आपके मजबूत इरादे आने वाली मुश्किलों से लड़ने की ताकत देती हैं. बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है कि आप कड़ी मेहनत करते रहें. आज हम आपको प्रेमसुख डेलू (IPS Premsukh delu) के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने एक किसान के घर में पैदा होकर खेती किसानी से लेकर ऊंट गाड़ी चलाई. ऐसे हालातों पर ज्यादतर लोग सफल नहीं हो पाते हैं लेकिन अपनी पढ़ने की लगन और मेहनत की बदौलत उन्होंने सफलता हासिल कर ली..
कौन हैं IPS प्रेमसुख डेलू
IPS प्रेमसुख डेलू राजस्थान के बीकानेर जिले के छोटे से गांव की रहने वाली हैं. उनके गांव का नाम रासीसर है. परिवार में कुल 4 भाई बहन हैं जिनमें से वो सबसे छोटी हैं. उनके पिता एक छोटे किसान थे. परिवार का गुजारा खेती-बाड़ी से ही चलता था. जमीन ज्यादा ना होने की वजह से पैसों की किल्लत हमेशा बनी रहती थी. प्रेमसुख स्कूल जाकर पढ़ाई करते थे साथ ही खेती बाड़ी में पिता का हाथ भी बटाते थें. वो खेतों में काम करते और ऊंटगाड़ी भी चलाते थें.
Premsukh delu ने स्नातक में हासिल किया गोल्ड मेडल
प्रेमसुख (IPS Premsukh delu education) ने अपने शुरुआती पढ़ाई गांव के ही एक सरकारी स्कूल में की थी. उन्होंने 10वीं कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. जिस स्कूल में उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की वो ज्यादा अच्छा नहीं था. इसके बाद उन्होंने बीकानेर के डूंगर कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई महाराज गंगा सिंह विश्वविद्यालय से किया. वो पढ़ाई लिखाई में इतने मेहनती थे कि उन्हें ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान इतिहास विषय में गोल्ड मेडल मिला.
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इन सब के अलावा गरीबी में पैसों की तंगी उनकी पढ़ाई में भी असर डालती थी. पैसों की कमी के चलते उनकी किताबें कॉपियां समय पर नहीं मिल पाती थी. हालांकि इन सब के बावजूद उनको माता-पिता से पूरा सहयोग मिलता था. माता-पिता भले ही पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन उन्होंने बच्चे की पढ़ाई में कभी रुकावट नहीं आने दी. प्रेमसुख बताते हैं कि मेरे पिता बहुत मेहनत करते थे.
अपनी जरूरत की चीजों को दरकिनार कर मेरी पढ़ाई की हर छोटी से छोटी जरूरत को पूरा करने की कोशिश करते रहते थें. उनकी मेहनत, त्याग और मेरे प्रति प्यार हमेशा मेरे लिए प्रेरणादायक रही है. पिता की मेहनत और आर्थिक हालातों को ध्यान में रखते हुए मैंने सरकारी नौकरी पाने का दृढ़संकल्प कर लिया था.
6 साल में 12 बार लगी सरकारी नौकरी
प्रेमसुख बताते हैं कि सर्वप्रथम उनका लक्ष्य एक सरकारी नौकरी हासिल करना था. इसलिए साल 2010 में उन्होनें बीकानेर में पटवारी के लिए अप्लाई किया. इसमें उन्हें सफलता मिली और वो बीकानेर के ही एक गांव में पटवारी के तौर पर लग गए. उसी साल उन्हें ग्राम सेवक के पद पर राज्य में दूसरा स्थान मिला. असिस्टेंट जेलर के साथ साथ उन्होंने 2011 में बीएड कर उन्होंने टीचर के पद पर भी काम किया.
तहसीलदार के पद पर रहते हुए पास की यूपीएससी परीक्षा
टीचर बनने के कुछ दिनों बाद उनका तहसीलदार के पद पर सिलेक्शन हो गया. इस दौरान वो अजमेर में तहसीलदार के पद पर रहे. तहसीलदार के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी. वो बताते हैं कि नौकरी के साथ साथ किसी भी परीक्षा की तैयारी करना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा के लिए तो समय देकर पढ़ाई करना और भी मुश्किल हो जाता है.
वो कहते थें कि नौकरी के बाद वो तुंरत पढ़ाई में लग जाते थें. इधर उधर की चीजों में वो समय नहीं बर्बाद कते थें. इतना ही नहीं समय के आभाव की वजह से उन्होंने कोचिंग भी नहीं की. उन्होंने कड़ी मेहनत की बदौलत 2015 में यूपीएससी की परीक्षा भी पास कर ली. पूरे देश में उन्हें 170वीं रैंक हासिल किया वहीं, हिंदी माध्यम के छात्रों में वो तीसरे स्थान के साथ टॉपर भी रहे