IAS Pranjal Patil : देश की पहली नेत्रहीन IAS अधिकारी जिन्हें रेलवे ने नौकरी देने से मना किया, UPSC में 124 वीं रैंक हासिल कर बनी टॉपर

IAS Pranjal Patil : देश की पहली नेत्रहीन IAS अधिकारी जिन्हें रेलवे ने नौकरी देने से मना किया, UPSC में 124 वीं रैंक हासिल कर बनी टॉपर

IAS Pranjal Patil Success Story : आंखों को मानव जीवन का सबसे अनमोल रत्न माना जाता है. ऐसे में जिस शख्स को ये खजाना नहीं होता है उसे ही इसकी कीमत का अंदाजा होता है. ऐसे में बिना आंखों के देश की सबसे कठिन परीक्षा में सफलता पाना अपने आप में हैरान करता है. हालांकि कड़ी मेहनत और एकाग्रता से लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले शख्स के लिए ये भी बड़ी बात नहीं लगती है.

आज हम जिस कहानी को आपसे साझा करने जा रहे हैं वो देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस (IAS Pranjal Patil) अधिकारी हैं. उनका नाम प्रांजल पाटिल है. एकतरफ इस परीक्षा में ज्यादातर लोग सफल नहीं हो पाते हैं, ऐसे में प्रांजल ने नेत्रहीन होते हुए ना सिर्फ इस परीक्षा में सफलता पाई बल्कि उन्होंने दो बार इस परीक्षा को पास किया और अच्छी रैंक भी हासिल की. आइए जानते हैं कैसे उन्होंने इस मुकाम को पा लिया..

कौन हैं IAS प्रांजल पाटिल

महाराष्ट्र के छोटे से शहर उल्लास नगर की रहने वाली प्रांजल पाटिल को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था. बचपन में प्रांजल की आंखें बिल्कुल ठीक थी. लेकिन एक बार के हादसे ने उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल कर रख दी. दरअसल, जब वो (IAS Pranjal Patil education) 6वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही थी तब उनकी क्लास की एक स्टूडेंट ने गलती से प्रांजल की आंख में पेंसिल घुसा दिया था. इस हादसे में उनकी एक आंख खराब हो गई.

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इस झटके से वो निकल भी नहीं पाईं थी कि एक साल के भीतर ही उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई. दोनों आखों की रोशनी के जानें के बाद वो पूरी तरह से टूट चुकी थीं. खुद को संभालते हुए उन्होंने हार नहीं मानी. इसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई कभी नहीं रोकी. आखिर में उनकी (IAS Pranjal Patil lifestyle) मेहनत और हार ना मानने की जिद ने उन्हें सफलता दिला ही दी.

क्या होती है ब्रेन-लिपि

आखों की रोशनी जाने के बाद प्रांजल के पास अपनी जिंदगी में आई विपदा को स्वीकारने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. अपनी पक्के दृढ़ संकल्प की बदौलत उन्होंने दूसरों पर बोझ बनने की बजाय आत्मनिर्भर होना स्वीकार किया. आखों की रोशनी का रोना ना रोकर उन्होंने (upsc Pranjal Patil) ब्रेन लिपि के माध्यम से पढ़ाई करने का दूसरा विकल्प चुना. बचपन में जिस लगन के साथ प्रांजल पढ़ाई करती थी उसी लगन के साथ उन्होंने तरीका बदलकर पढ़ाई करना शुरू कर दिया.

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अपनी पढ़ाई के लिए प्रांजल ने टेक्नोलॉजी का सराहा लिया. इसमें उन्होंने एक खास सॉफ्टवेटर की मदद से पढ़ाई करना शुरू कर दिया. इस सॉफ्टवेयर में खासियत थी कि ये किताबों को पढ़-पढ़कर सुनाता था. इस सॉफ्टेवयर में वो किताबों को स्कैन कर देती थी जिसके बाद ये उनके लिए पढ़कर सुनाने लगता था. इसकी मदद से उन्होंने अपनी यूपीएससी की तैयारी पूरी की. प्रांजल बताती हैं कि उन्हें इस तरह से पढ़ाई करने में काफी दिक्कत होती थी लेकिन सफलता की राह में उन्हें ये मुश्किलें तो झेलनी ही थी.

पढ़ाई के साथ साथ की यूपीएससी की तैयारी

प्रांजल ने अपनी 10वीं की पढ़ाई मुंबई स्थित दादर के श्रीमती कमला मेहता स्कूल से की थी. इस स्कूल में उन्हें बेन लिपि में शिक्षा दी गई थी. 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने चंदाबाई कॉलेज से 12वीं पास किया. ग्रेजुएशन के लिए उन्होंने सेंट ज़ेवियर कॉलेज से कला माध्यम से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की.

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उन्होंने दिल्ली के जेएनयू कॉलेज से एमए, एमफिल और पीएचडी की डिग्री भी हासिल कर ली. पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के साथ ही उन्हें यूपीएससी की परीक्षाओं के बारे के बारे में पता चला. इस दौरान ही उन्होंने आईएएस बनने का मन बना लिया था. पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करनी भी शुरू कर दी

नेत्रहीन होने की वजह से 2 बार निकाला गया

यूपीएससी की तैयारी से पहले प्रांजल ने काफी सरकारी नौकरियों में कोशिश की. पढ़ाई में अच्छा होने की वजह से ज्यादातर नौकरियों में वो सिलेक्ट हो जाती लेकिन नेत्रहीन होने की वजह से उन्हें निकाल दिया जाता था. इन्हें एकबार भारतीय रेलवे ने नौकरी देने से मना कर दिया था. वहीं, साल 2016 में उनको यूपीएससी में 773वां स्थान मिला था. उस समय इंडियन रेवेन्यू सर्विस में नौकरी करने का मौका मिला लेकिन ट्रेनिंग के दौरान नेत्रहीन होने की वजह से उन्हें वहां से भी नौकरी देने को मना कर दिया था.

कभी हालातों से हार ना मानने वाली प्रांजल(upsc Pranjal Patil success) ने दोबारा साल 2017 में प्रयास किया और 124 वीं रैंक के साथ परीक्षा पास कर ली. उन्होंने जो दृढ़ संकल्प लिया था उसे पूरा करके दिखा दिया. फिलहाल वो केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में कार्यरत हैं. इसलिए जो लोग हालातों के आगे हार मान लेते हैं ऐसे लोगों के लिए वो एक प्रेरणा के रूप में हैं

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