IAS Sheikh Ansar Ahmad : ऑटो चालक का बेटा होटलों में जूठें बर्तन साफ कर बना IAS अधिकारी, 361वीं रैंक पाकर बना टॉपर
IAS Sheikh Ansar Ahmad : शाहरुख खान की एक फिल्म का डॉयलॉग है कि ‘किसी चीज को सिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे मिलाने में लग जाती है’. उनकी फिल्म का ये डॉयलॉग ना जाने कितने लोगों के जीवन में उतर गया है. ऐसे ही एक IAS अधिकारी हैं अंसार अहमद शेख. जिनके संघर्ष की कहानी जानकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे.
अंसार अहमद की कहानी उन लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए, जो अपने हालातों और परिस्थितियों के आगे नतमस्तक हो जाते हैं. किसी फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह अंसार अहमद ने गरीबी में भूखें रहकर, होटलों में लोगों के जूठे बर्तन साफ किए और पूरी मेहनत से पढ़ाई की और IAS अधिकारी बनकर पूरे देश में अपने परिवार का नाम रौशन किया..
कौन हैं शेख अंसार अहमद
महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव शेलगांव में रहने वाले शेख अंसार अहमद (Sheikh Ansar Ahmad) काफी गरीब परिवार से थे. उनके पिता अहमद शेख एक ऑटो चालक थे. अंसार के परिवार में उनके साथ उनकी 2 बहनें और 1 भाई भी रहता था. इतने बड़े परिवार का खर्च चलाना काफी मुश्किल हो जाता था. उनकी मां घर का काम करने के बाद दूसरों के खेतों में काम किया करती थी.
एकबार घर के मुश्किल हालातों और गरीबी को देखते हुए उनके पिता ने उनकी पढ़ाई छुड़वाने की सोंची. उस दौरान वो चौथी कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे. पढ़ाई में अच्छा होने की वजह से अंसार अहमद के अध्यापक पुरुषोत्तम पडुलकर ने उनके पिता को पढ़ाई ना रोकने की सलाह दी. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि अगर उनके अध्यापक ना होते तो शायद वो ऑटो चला रहे होते.
होटल में Sheikh Ansar Ahmad ने साफ किए लोगों के जूठे बर्तन
अंसार अहमद (Sheikh Ansar Ahmad IAS) के पिता ने अध्यापक की बात मान ली. अध्यापक के समझाने के बाद उनकी पढ़ाई आगे जारी रही. वो जब 10वीं कक्षा में पहुंचे तब गर्मियों की छुट्टियों के दौरान उन्होंने कंप्यूटर सीखने की ठान ली. जिस कंप्यूटर क्लास को वो ज्वॉइन करना चाहते थे, उसकी फीस 2800 रुपए के आसपास थी.
घर में पैसों की कमी के चलते इतनी बड़ी रकम मिलना बहुत मुश्किल था. फीस भरने के लिए अंसार ने पास के एक होटल में वेटर का काम करना शुरू कर दिया. सुबह 8 बजे से रात 11 बजे तक वो होटल में लोगों के जूठे बर्तन साफ करते, कुएं से पानी भरते, टेबल साफ करते और रात में होटल की फर्श साफ करते थे. इस दौरान जब उन्हें 2 घंटे का ब्रेक मिलता तो वो खाना खाकर कंप्यूटर क्लास अटेंड करने जाते थे.
भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए बने IAS अधिकारी
एकबार अंसार अहमद अपने पिता के साथ बीपीएल योजना से जुड़े काम के लिए सरकारी ऑफिस पहुंचे. ऑफिस में मौजूद अधिकारी ने अहमद के पिता से रिश्वत मांगी. जरूरी कार्य करवाने के लिए उनके पिता को अधिकारी को रिश्वत देनी पड़ी. उन्होंने जब अपने पिता से पूछा की अधिकारी को रिश्वत क्यों दी ? तो उन्होंने कहा कि बिना दिए कुछ नहीं हो पाता है.
तब अंसार अहमद को लगा कि वो इस भ्रष्टाचार को पूरी तरह से मिटा कर रहेंगे. तभी उन्होंने अधिकारी बनने का मन बना लिया था. अंसार अहमद जिस कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, वहां के एक टीचर का सिलेक्शन एमपीएससी में हो गया था. जिनसे प्रभावित होकर उन्होंने उस अध्यापक से सलाह ली. उनके टीचर ने उन्हें यूपीएससी के पैटर्न और परीक्षा से संबंधित जरूरी जानकारी दी. हालांकि अंसार अहमद (Sheikh Ansar Ahmad MPSC) का एमपीएससी में सिलेक्शन नहीं हो पाया था.
असफलता का नहीं था डर
अपनी बेसिक शिक्षा पूरी करने के बाद तक अंसार अहमद छुट्टियों के दौरान काम किया करते थे. छुट्टियों में काम कर जो पैसा मिल जाता उससे ग्रेजुएशन की पढ़ाई किया करते थे. हालांकि ग्रेजुएशन की पढ़ाई के आखिरी 2 सालों में उन्होंने पूरी तरह से यूपीएससी (Sheikh Ansar Ahmad UPSC) की परीक्षा में पूरी तरह से ध्यान लगाया. ऐसे में उन्हें काम भी छोड़ना पड़ा. पैसों की जरूरत को उनके छोटे भाई ने पूरा किया.
बता दें कि उनके छोटे भाई ने 5वीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी थी. इसके बाद वो काम में लग गए थे.आगे वो बताते हैं कि उनके पास हारने का विकल्प नहीं था. इसकी वजह से उन्होंने बहुत मेहनत की. पढ़ाई में उनकी हिम्मत, मेहनत और हौसले की बदौलत उन्हें सफलता हासिल हुई. साल 2015 में पहले ही प्रयास में उन्होंने 361वीं रैंक हासिल की. अंसार अहमद अपने जीवन में छोटे भाई, माता-पिता और अपने शिक्षकों को अपनी सफलता का क्रेडिट देते हैं.
सफल होने पर दोस्तों ने दी पार्टी
अंसार अहमद (Sheikh Ansar Ahmad) की गरीबी का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि जब वो सफल हुए तो उनके पास दोस्तों को पार्टी कराने के पैसे भी नहीं थे. वो बताते हैं कि दोस्तों ने उनको मिलकर पार्टी दी थी. अंसार अहमद कि ये सफलता लोगों के लिए नजीर है जो आभावों के पीछे छुप जाते हैं. गरीबी और परिस्थियों का नाम लगाकर किसी काम को करने से पीछे हट जाते हैं. हकीकत तो ये है कि मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके पास जूनून और जिद होती है.