karsanbhai patel : बेटी की मौत के बाद यादों में जिंदा रखने के लिए पिता ने खोली कंपनी, घर-घर वाशिंग पाउडर बेचकर बना 25,000 करोड़ का मालिक
karsanbhai patel : निरमा एक ऐसी कंपनी है जिसको शायद ही कोई घर ऐसा हो जो उपयोग ना करता हो. इसका उपयोग आज लगभग सभी घरों में किया जाता है। एक समय ऐसा था कि पूरे देश में निरमा सबसे ज्यादा बिकने वाला डिटर्जेंट पाउडर था. लेकिन हर बड़े काम की शुरुआत छोटी ही होती है. दृढ़ संकल्प और मेहनत की बदौलत किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. निरमा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.
एक सरकारी नौकरी करने वाले आम आदमी ने बेटी की मौत के बाद ऐसी कंपनी खोली जिसे हर घर उसके नाम और लड़की के चेहरे से पहचान सकता है. इस सरकारी नौकरी करने वाले शख्स का नाम करसनभाई पटेल (karsanbhai patel) है. आइए जानते हैं करोड़ों रुपयों का व्यापार करने वाली ये कंपनी करसनभाई पटेल की बदौलत कैसे सफल हो गई.
कौन हैं करसनभाई पटेल
ऐसा कहा जाता है कि गुजरात के लोगों को व्यापार की समझ अच्छी खासी होती है. ये किसी भी व्यापार में पीछे नहीं रहते हैं। इसके लिए भले ही इन्हें छोटी-मोटी नौकरी करनी पड़े या गली-गली घूमकर अपने प्रोडक्ट को बेचना पड़े. ये कुछ करने के लिए तैयार रहते है। 1969 में निरमा कंपनी की शुरुआत करने वाले करसनभाई पटेल (man behind nirma karsanbhai patel) ने भी कुछ ऐसा ही किया. उनका जन्म गुजरात के मेहसाणा शहर एक किसान परिवार में हुआ.
पिता बहुत छोटे किसान थे. इसके बावजूद भी उन्हें पढ़ाई के महत्व का अच्छी तरह अंदाजा था. उन्होंने अपने बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाई. 21 साल की उम्र में इन्होंने रसायन शास्त्र में बी.एस.सी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद इन्होने घर का खर्च उठाने के लिए नौकरी करना शुरू कर दिया. लेकिन ये शुरु से अपना व्यवसाय करना चाहते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्रयोगशाला में सहायक यानी लैब असिस्टेंट के पद पर नौकरी की. इसके बाद उन्हें गुजरात सरकार के खनन और भूविज्ञान विभाग में उन्हें नौकरी मिल गई.
सरकारी नौकरी छोड़कर व्यापार में रखा कदम
करसनभाई ने निरमा की शुरुआत ऐसे ही नहीं की, उनकी इस शुरुआत के पीछे बहुत बड़ी दर्दनाक कहानी है. उनकी (karsanbhai patel) सरकारी नौकरी से उनका जीवन ठीक-ठाक चल रहा था. वो एक सामान्य जीवन जी रहे थे. उनके परिवार में वो अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहते थे. उनकी बेटी का नाम निरुपमा था और प्यार से सब उसे निरमा कहते थे। करसन पटेल अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे.
वो उनकी बेटी को पढ़ा लिखाकर ऐसा बनाना चाह रहे थे कि जिससे उनका नाम हो सके. लेकिन शायद किस्मत को ये मंजूर नहीं था. जब वह स्कूल में पढ़ती थी तभी एक हादसे में उसकी मौत हो गई. एक सुबह करसनभाई को एक ऐसा उपाय सूझा जिससे वो अपनी बेटी को वापस ला सकते थे. उन्होंने खुद से वाशिंग पाउडर बना कर बेचने का फैसला किया और उसका नाम अपनी बेटी के नाम पर रखने का फैसला लिया। इस तरह करसनभाई ने अपने इस Product का नाम ‘निरमा’ रखा।
हेमा रेखा जया और सुषमा… सबकी पसंद…”
हेमा रेखा जया और सुषमा… सबकी पसंद…” ये लाइन हमने बचपन से कई बार टीवी में आने वाले ऐड में सुनी है। गुजरात के अहमदाबाद के एक शख्स ने अपने घर के पीछे डिटर्जेंट पाउडर बनाना शुरू किया था, जिसको पॉपुलर करने के लिए इस लाइन का उपयोग किया गया था. शुरुआत में डिटर्जेंट बनाने के बाद वो इसे घर-घर जा कर बेचा करते थे. इसके साथ ही डिटर्जेंट पाउडर के हर पैकेट के साथ ये गारंटी भी दी जाती थी, कि अगर सही ना हुआ तो वह पैसे वापस कर देगा. उस समय मार्किट में मिलने वाले ऐसे पाउडर की कीमत 13 रुपये किलो थी. लेकिन इसको हर घर तक पहुंचाने के लिए इसे करसनभाई 3 रुपए में बेचा करते हैं
15 हजार से भी ज्यादा लोगों को दिया रोजगार
करसनभाई का व्यापार से कोई लेना देना नहीं था. वो सरकारी नौकरी करते थे. इसलिए जब उन्होंने इस व्यापार को शुरू किया तो शुरुआत में उन्हें असफलता मिली. उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया था. इस दौरान उन्होंने कुछ छोटे दुकानदारों से बातचीत की. छोटे दुकानदारों ने उनका उत्पाद खरीदने के लिए मंजूरी दे दी. इसके साथ ही उन दुकानदारों ने इन्हें निरमा को कुछ बेहतर करने का सुझाव भी दिया. एक से दो…दो से तीन..दुकानदारों की संख्या बढ़ती गई.
इससे करसनभाई का व्यापार भी खुब तरक्की किया. प्रोडक्ट की बिक्री बढ़ने के बाद उनका एड टीवी, रेडियो और प्लेटफार्म पर आने लगा. इसका असर ये हुआ कि उनका उत्पाद पूरे भारत में फैल गया. 2009 में फोर्ब्स मैगजीन के अनुसार करसन भाई भारत के 100 सबसे ज्यादा धनी लोगों की सूची में शामिल हो गए. उनकी कंपनी में 15000 से भी ज्यादा लोग काम करते हैं. वहीं कंपनी का सालाना टर्नओवर 25,000 करोड़ रुपए है