क्या देश की न्याय व्यवस्था भगवान भरोसे है ?

क्या देश की न्याय व्यवस्था भगवान भरोसे है ?

देश में न्याय पाना अपने आप में एक बहुत बड़ा टास्क है.किसी केस में आप फंस गए या फिर आप न्याय की उम्मीद में मुकदमा करते हैं तो जरूरी नहीं की आपको जल्द ही न्याय मिल जाए.इसका जीता-जागता उदाहरण पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. चंद्रशेखर पर जासूसी वाले केस से देखा जा सकता है जिनकों दशकों बाद सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला. इस न्याय प्रक्रिया में उन्होंनेे अपनी सारी जिंदगी जेल में ही गुजार दी. अब सवाल ये उठता है कि आखिर देश में न्याय व्यवस्था में देरी क्यों होती है.

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देश में पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी का कारण देश की अलग-अलग अदालतों में जजों की कमी है. कानून मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 10 लाख लोगों पर सिर्फ 19 जज है.इस रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में कुल 6 हजार जजों  की कमी है.

मार्च में संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में बताया गया था की देश में 10 लाख नागरिकों पर 19.49 जज हैं.रिपोर्ट के आधार पर देश की निचली अदालतों पर 5,748 वहीं 24 उच्च अदालतों में 406 जजों के पद खाली पड़े हैं.

देश की निचली अदालतों पर 16,726 जज काम कर रहे हैं, जबकि 1987 के कानून आयोग के द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के  मुताबिक 22,474 जज होने चाहिए.

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ऐसा ही हाल देश की उच्च और उच्चतम अदालत का है.उच्च अदालत में इस समय 673 जज न्यायिक प्रक्रिया संभाल रहे हैं जबकि 1,079 जज होने चाहिए . वहीं उच्चतम न्यायालय  की बात करें तो 6 जजों के पद खाली हैं.बता दें, कि उच्चतम न्यायालय में 31 जजों को होना चाहिए.

उच्चतम अदालत, उच्च अदालत और निचली अदालतों में जजों की कमी के चलते न्यायिक प्रक्रिया में  देरी का सामना करना पड़ता है.

वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अगस्त में सौंपी एक रिपोर्ट में बताया था की देश की सिर्फ जिला और लोक अदालतों में 2,76,74,449 केस अभी बाकी हैं. वहीं, जजों के खाली पदों पर नजर डालते हुए उन्होंने  कहा था की जजों की भर्ती किसी कारण से हुई  देरी के चलते नहीं हो पाती है.

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बता दें कि न्याय आयोग के 120वीं रिपोर्ट में बताया गया था की देश में 10 लाख लोगों में 50 जजों की जरूरत है.न्याय आयोग ने ये रिपोर्ट 1987 में सौंपी थी,जाहिर है 1987 के बाद से हालात काफी बदले हैं और केस भी काफी पेंडिग हैं इसलिए ज्यादा जजों की जरूरत है.जिसकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है. आपको बताते चलें कि 2016 में हुई एक रिसर्च के मुताबिक देश में करीब 2 करोड़ पुराने मुकदमों को निपटाने के लिए करीब 24889 जजों की जरूरत है.तो जाहिर है जब देश में इतने जजों के पद खाली रहेंगे तो न्याय की उम्मीद भगवान भरोसे ही रहेेगी और  के. चंद्रशेखर जैसे लोगों को न्याय के लिए पूरी जिंदगी इंतजार करना पड़ेगा.